जंगल हैं तो पानी है,
पानी है तो जीवन है,
दोनों हैं तो मौसम है,
मौसम है तो दाना पानी है,
वर्ना ये दुनिया फ़ानी है!
मेरा क्या है मै तो सदियों से,
प्रकृति के संग रहता आया,
हर मौसम को मैंने समझा,
रिश्ता जोड़ा और निभाया !
आज तुम से ये कहता हूँ,
खोलो अपने तंग विचारों के दरवाज़े,
बदलो थोडा अपना चाल चलन!
जैसे इसने तुमको समझा,
किया जतन से पालन पोषण,
आज इसे फिर ज़रुरत तुम्हारी,
ताकि ये दे तुमको अपना सब कुछ,
जैसे इसने दिया अविरल जीवन तुमको !
जंगल हैं तो पानी है, पानी है तो जीवन है...
प्रकृति से मैं हूँ,
मैं हूँ तो तुम हो,
तुम हो तो हम सब हैं,
चलो मिल आज ये प्रण करलें,
नहीं करेंगे ऐसा वो सब कुछ,
जो करते वर्षों से हमने,
आहत किया जननी को अपने !
जंगल हैं तो पानी है,
पानी है तो जीवन है,
दोनों हैं तो मौसम है,
मौसम है तो दाना पानी है,
वर्ना ये दुनिया फ़ानी है!
यहाँ में जुड़ा शायद अंतर मन से इसी लिए की इस तरह की भावना मुझे या मेरी आत्मा को प्रिय है ....इस प्रकृति धरा का माँ बेटी का रिश्ता है ...उसको कितना सहज भाव से प्रस्तुत किया है बस वही अंतर मन को छु जाता है ...चंदू भाई जी प्रक्रति के साथ इसी लिए प्रिय मुझे भी मानव जीवन हे ही इसी लिए ...इसको समझना ही सर्वो परी ...बहुत शुक्रिया इस तरह की आत्मिक और भावनाओं से जुडी कृति साझा करने का !!!!!!!!!!!!Nirmal Paneri
ReplyDeleteआपका आभार निर्मल भाई साहब, पढने और पसंद करने के लिए ....
ReplyDeletewhole ecological concept poetically dealt!!!
ReplyDeleteसुंदर रचना!
Anupama ji Thanks.. This was written for Megha's school magazine page, covering 'We & the Jungle', with valuable contribution from Naveen dada..
ReplyDeletebahut sunder sandesh aur utni hi sunder rachna..badhai sweekar karen
ReplyDeleteamrendra "amar" जी,
ReplyDeleteआपका स्वागत व बहुत बहुत आभार !