जंगल हैं तो पानी है,
पानी है तो जीवन है,
दोनों हैं तो मौसम है,
मौसम है तो दाना पानी है,
वर्ना ये दुनिया फ़ानी है!
मेरा क्या है मै तो सदियों से,
प्रकृति के संग रहता आया,
हर मौसम को मैंने समझा,
रिश्ता जोड़ा और निभाया !
आज तुम से ये कहता हूँ,
खोलो अपने तंग विचारों के दरवाज़े,
बदलो थोडा अपना चाल चलन!
जैसे इसने तुमको समझा,
किया जतन से पालन पोषण,
आज इसे फिर ज़रुरत तुम्हारी,
ताकि ये दे तुमको अपना सब कुछ,
जैसे इसने दिया अविरल जीवन तुमको !
जंगल हैं तो पानी है, पानी है तो जीवन है...
प्रकृति से मैं हूँ,
मैं हूँ तो तुम हो,
तुम हो तो हम सब हैं,
चलो मिल आज ये प्रण करलें,
नहीं करेंगे ऐसा वो सब कुछ,
जो करते वर्षों से हमने,
आहत किया जननी को अपने !
जंगल हैं तो पानी है,
पानी है तो जीवन है,
दोनों हैं तो मौसम है,
मौसम है तो दाना पानी है,
वर्ना ये दुनिया फ़ानी है!